फरीदाबाद-गुरुग्राम की अरावली की पहाड़ी पर बनता जा रहा है कबाड़ का एक और पहाड़ जो प्रकृति के लिए बन सकता है एक खतरा। पर्यावरण बचाएँ - जीवन को खुशहाल बनायें। प्लास्टिक और केमिकल को न कहें।
फरीदाबाद और गुरुग्राम के बीच में स्थित अरावली की खूबसूरत पहाड़ियां - एक नजर में।
फरीदाबाद और गुरुग्राम के बीच में स्थित अरावली की खूबसूरत पहाड़ियों को कौन नहीं जानता। दूर-दूर तक फैली छोटी-बड़ी पहाड़ों की चोटियाँ, तरह-तरह के वृक्ष और पौधे। एक ऐसा मनोरम दृश्य जो सभी को अपनी और आकर्षित करता है। बहुत समय पूर्व यहाँ पर खनन का कार्य पूरे जोर से किया जाता था मगर बाद में यहाँ पर खनन का कार्य पूर्ण रूप से बंद कर दिया और इसे वन्य छेत्र घोषित कर दिया गया, शायद यह सोचकर कि यहाँ पर ऐसा करने के बाद वन्य पेड़ पौधे आसानी से पनप जाएंगे और प्रकृति का एक अच्छा नजारा बन सकता है और साथ ही साथ मनुष्य और जानवरों के लिए एक अच्छा वातावरण बन जाएगा।
अरावली पर कबाड़ का नया पहाड़।
आज यह लेख हम लिख रहे है अरावली पर बनने वाले कबाड़ के पहाड़ पर। जी हाँ आपने सही सुना। पिछले दिनों मैं गुरुग्राम से फरीदाबाद अरावली वाले मार्ग से गाड़ी से जा रहा था। मौसम कुछ-कुछ साफ़ था , कुछ दूर चलने के बाद अरावली पर चारों हरियाली और पेड़-पौधों को देखकर मेरे मन में बड़ी प्रशन्नता होने लगी कि चलो अपने आस-पास भी एक ऐसी अच्छी जगह है जो प्रकृति को बचाने का काम कर रही है। मैं अपने आप को धन्य समझ रहा था और मन ही मन इसके लिए भगवान को धन्यवाद भी दे रहा था जो उन्होंने हमें ऐसा अनमोल तोहफा दिया था।
लेकिन जैसे ही मैंने गुरुग्राम-फरीदाबाद टोल पार किया मुझे अपने दाएँ हाथ की तरफ एक ऊँचा चट्टान सा दिखने लगा। कुछ नजदीक जाने पर अच्छी तरह देखकर मन विचलित हो गया और मेरी सारी ख़ुशी एक पल में ही ख़त्म होने लगी। मैंने गाड़ी साइड में लगा दी और ध्यान से देखने लगा। यह कोई प्राकृतिक चट्टान नहीं थी यह मानव निर्मित चट्टान थी जो हमने अपने -अपने घर से कबाड़ जैसे प्लास्टिक, पॉलीथिन ,कूड़ा-करकट, रबड़ के टुकड़े ,रबर का कबाड़ और न जाने क्या क्या। ज्यादातर तो मुझे प्लास्टिक और पॉलीथिन ही दिख रही थी जिसने एक बड़ी चट्टान का रूप ले लिया है। यह हमारे सोचने के लिए एक बहुत बड़ा विषय है।
दिल्ली के गाजीपुर गाँव के पास हुआ था ऐसा हादसा।
एक बार मैं आपका ध्यान कुछ समय पूर्व हुई घटना की तरफ दिलाता हूँ। कुछ वर्ष पहले दिल्ली के गाजीपुर के पास इसी तरह का कबाड़ का ऊँचा टीला बना हुआ था। दिल्ली का अधिकतर कबाड़ वहीँ पर डाला जा रहा था। बारिश के दौरान वो कबाड़ का पहाड़ खिसक गया था और साथ ही बनी रोड पर चलने वाली गाड़ियों को भी अपनी चपेट में ले लिया था जोकि T.V. पर न्यूज़ पर भी दिखाया गया था और उस पर अनेकों विद्धानों ने अपनी-अपनी बात भी रखी थी मगर उसका कोई ठोस हल निकला या नहीं यह तो मुझे नहीं पता।
पर्यावरण है तो जीवन है।
अगर हमारा पर्यावरण सही है तो जीवन भी सही है नहीं तो सभी जीव-जन्तुओं तो जीवन दुर्लभ हो जाएगा। जैसा की हम जानते है अभी बारिश का मौसम शुरू हो गया है। बहुत वर्षों पहले जब बारिश होती थी तो उसका बहुत सा पानी झील और झरनो के माध्यम से इकट्ठा हो जाता था और जमीन के नीचे चला जाता था जिससे जमीन में पानी का लेवल सही और संतुलित रहता था।
इस पहाड़ी का जल बहुत निर्मल और साफ होता था क्योंकि कोई कबाड़ और कोई अवशिष्ट नहीं मिले होते थे मगर इस तरह से अगर हम ऐसे इस प्लास्टिक और रबड़ का पहाड़ बनाते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब यहाँ का सारा पानी दूषित हो जायेगा।
आप और हम बहुत अच्छी तरह से समझते हैं की धरती मां हमें वही जल वापिस देंगी जो हम उन्हें देंगे अर्थात यदि हम जल के अंदर प्लास्टिक और केमिकल युक्त कबाड़ को मिलाएंगे तो निश्चय ही सारा जल दूषित हो जाएगा और यही जल आस-पास के इलाके में रहने वाले लोगों और जानवरों तक पहुँच जाएगा। यही जल हम सबको पीने के लिए मिलेगा और जब दूषित जल हमारे शरीर के अंदर प्रवेश कर जाएगा तो यह बताने की जरूरत नहीं है की हमें कितनी भयंकर बिमारियों से झूझना पड़ेगा।
सभी पाठकों से नम्र निवेदन है कि कृपा करके संभल जाएँ कहीं ऐसा न हो कि बाद में हम सबको पछताना पड़े। जितना हो सके प्लास्टिक,पॉलिथीन और केमिकल का प्रयोग काम करें। हो सके तो प्लास्टिक और पॉलिथीन के इस्तेमाल को पूर्णतया बंद कर दें। यही हमारे जीवन के लिए आवश्यक है। यदि हम अपना-अपना प्लास्टिक और रबड़ आदि के कबाड़ को कम करेंगे तो निश्चय ही ऐसे कृतिम पहाड़ों को बनने से बंद कर सकते हैं।
जल है तो कल है। पर्यावरण बचाएँ - जीवन को खुशहाल बनायें। प्लास्टिक, पॉलिथीन और केमिकल को न कहें।
इस पहाड़ी का जल बहुत निर्मल और साफ होता था क्योंकि कोई कबाड़ और कोई अवशिष्ट नहीं मिले होते थे मगर इस तरह से अगर हम ऐसे इस प्लास्टिक और रबड़ का पहाड़ बनाते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब यहाँ का सारा पानी दूषित हो जायेगा।
आप और हम बहुत अच्छी तरह से समझते हैं की धरती मां हमें वही जल वापिस देंगी जो हम उन्हें देंगे अर्थात यदि हम जल के अंदर प्लास्टिक और केमिकल युक्त कबाड़ को मिलाएंगे तो निश्चय ही सारा जल दूषित हो जाएगा और यही जल आस-पास के इलाके में रहने वाले लोगों और जानवरों तक पहुँच जाएगा। यही जल हम सबको पीने के लिए मिलेगा और जब दूषित जल हमारे शरीर के अंदर प्रवेश कर जाएगा तो यह बताने की जरूरत नहीं है की हमें कितनी भयंकर बिमारियों से झूझना पड़ेगा।
सभी पाठकों से नम्र निवेदन है कि कृपा करके संभल जाएँ कहीं ऐसा न हो कि बाद में हम सबको पछताना पड़े। जितना हो सके प्लास्टिक,पॉलिथीन और केमिकल का प्रयोग काम करें। हो सके तो प्लास्टिक और पॉलिथीन के इस्तेमाल को पूर्णतया बंद कर दें। यही हमारे जीवन के लिए आवश्यक है। यदि हम अपना-अपना प्लास्टिक और रबड़ आदि के कबाड़ को कम करेंगे तो निश्चय ही ऐसे कृतिम पहाड़ों को बनने से बंद कर सकते हैं।
जल है तो कल है। पर्यावरण बचाएँ - जीवन को खुशहाल बनायें। प्लास्टिक, पॉलिथीन और केमिकल को न कहें।
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